Thursday, September 19, 2019

फसल विज्ञान विभाग

इस संभाग के अंतर्गत एक डीम्ड यूनीवर्सिटी सहित 13 राष्ट्रीय संस्थान, 3 ब्यूरो, 9 प्रायोजना निदेशालय, 2 राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र, 27 अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान प्रायोजनाएं और 5 अखिल भारतीय नेटवर्क प्रायोजनाएं कार्यरत हैं। इसके अलावा इसी संभाग द्वारा कई रिवॉल्विंग फंड स्कीमों और राष्ट्रीय अनुसंधान नेटवर्क का संचालन और बाहरी परियोजनाओं को भी तकनीकी स्वीकृति प्रदान की जाती है।
भा.कृ.अनु.प. मुख्यालय में स्थित इस संभाग में 6 कमोडिटी सब्जैक्ट पर तकनीकी विभाग हैं- (1.) खाद्य और चारा फसलें (2.) तिलहन और दलहन (3.) व्यावसायिक फसलें (4.) बीज (5.) पादप सुरक्षा (6.) बौद्धिक संपदा अधिकार। सहायक महानिदेशक प्रत्येक विभाग के प्रमुख हैं। 3 प्रधान वैज्ञानिक विभिन्न वैज्ञानिक/तकनीकी मामलों में सहायता देते हैं और उपसचिव (फसल विज्ञान) आन्तरिक प्रशासनिक मामलों की देखरेख करते हैं।
प्राथमिकता वाले क्षेत्र
  • विभिन्न कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्रों के अनुकूल उन्नत फसल किस्मों/संकरों के विकास के लिए पारम्परिक और आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग; दक्ष, कम लागत वाली, पर्यावरण हितैषी, टिकाऊ फसल उत्पादन और सुरक्षा प्रौद्योगिकियां; मौलिक, रणनीतिक और संभावित फसल विज्ञान अनुसंधान।
  • बीज उत्पादन प्रौद्योगिकियों में सुधार और संकर किस्मों के समावेश द्वारा प्रजनक बीज उत्पादन
  • पौधों, कीटों और कृषि के लिए महत्वपूर्ण सूक्ष्मजीवों का संरक्षण और टिकाऊ उपयोग
  • फसल विज्ञान में गहन ज्ञान परामर्श दात्री सेवा
उपलब्धियां
  • विभिन्न कृषि पारिस्थितिकियों के लिए 3300 उच्च उत्पादक किस्मों/संकरों का विकास; अखिल भारतीय समन्वित प्रायोजनाओं के नेटवर्क द्वारा आवश्यक प्रौद्योगिकियों की पहचान; 1960 और 1990 के मध्य हरित और पीत क्रांति के दौरान प्राप्त हुई उपरोक्त उपलब्धियां; वर्ष 1950-51 की तुलना में वर्तमान में खाद्यान्न, तोरिया-सरसों और कपास की राष्ट्रीय औसत उत्पादकता में 2-4 गुना बढ़ोतरी।
  • 1970 में विश्व में पहली बार बाजरा और कपास के संकरों का विकास; अन्य फसलों में भी संकरों का विकास जैसे अपारम्परिक फसलें- अलसी, कुसुम, धान, अरहर और तोरिया-सरसों; क्वालिटी प्रोटीन मक्का (क्यूपीएम) और बेबी कॉर्न में अधिक उपज के साथ उच्च पोषण मान वाले एकल क्रॉस संकरों का विकास।
  • कई फसलों में वन्य प्रजातियों से दबाव सहिष्णु और क्वालिटी जीन का समावेशन; दलहनों और अन्य फसलों में नयी फसल पद्धतियों के लिए अगेती और उपयुक्त पादप किस्मों का विकास; कई फसलों में संकर किस्मों के विकास के लिए प्रभावी नर बंध्य पद्धतियों का विकास।
  • पूसा बासमती की आनुवंशिक पृष्ठभूमि में IRBB-55 को जीन का 'xa13' और 'xa21' मोलिक्यूलर मार्कर सहायक चयन। पिरामिड और बैकक्रॉस ट्रांसफर का सफल प्रयोग। इसी से झुलसा सहिष्णु उन्नत पूसा बासमती-1 का विकास हुआ।
  • सरसों में नरबंध्यता के गुणों को दर्शाने वाले एक जीन की पहचान कर अलग किया गया। फर्टिलिटी रेस्टोरर जीन के लिए 'स्कार'मार्कर का विकास किया गया।
  • ब्लास्ट रोग का प्रतिरोधी 'Pi-Kh' जीन क्लोन और लक्षण वर्णन तथा पराजीनी धान में इस जीन की वैद्यता।
  • पराजीनी पौधों में बाह्य जीन के प्रवेशन के लिए नए एरबीडोप्सिस आधारित प्रमोटर की पहचान की गयी।
  • सूखा सहिष्णु गेहूँ किस्म C306 से सूखा दबाव उत्तरदायी कारक 'TaCBF5' और 'TaCBF9'को अलग करना।
  • वैश्विक प्रयत्नों में धान के क्रोमोसोम 11 के 67 लाख आधारीय जोड़ों का अनुक्रमण।
  • 33 प्रमुख फसलों की डीएनए फिंगरप्रिटिंग; जारी की गई 2215 किस्मों की फिगरप्रिटिंग की गई।
  • एनबीपीजीआर, नई दिल्ली में विभिन्न फसलों और उनकी वन्य प्रजातियों की 3,46,000 जर्मप्लाज्म प्रविष्टियों का संरक्षण। एनबीएआईएम, मऊ में 2517 सूक्ष्मजीवों का संवंर्धन (394 बैक्टीरिया, 2077 फफूंद, 36 एक्टिनोमाइसिट्स और 10 यीस्ट प्रभेद। आईएआरआई, नई दिल्ली में 1,75,000 कीट प्रजातियों के डेटाबेस को डिजिटल किया गया।
  • एनबीपीजीआर, नई दिल्ली में मूल्यवान क्षमता वाले पादप जर्मप्लाज्म का रजिस्ट्रेशन और डाक्यूमेंटेशन तैयार करने पर आधारित प्रक्रिया विकसित। 77 पादप प्रजातियों के 482 प्रभेदों को रजिस्टर किया गया।
  • कई फसलों में सेमीलूपर कैटरपिलर के समन्वित प्रबंधन के लिए कम लागत में बहुगुणन करने पर आधारित प्रणाली सहित जैवकीटनाशी प्रभेद DOR Bt-1 का विकास करके इसका फार्मूला KNOCK W.P को रजिस्टर करके व्यावसायीकरण किया गया। ट्राइकोग्रामा चिलोनिस (इंडोग्रामा) के एंडोसल्फान सहिष्णु प्रभेद का विकास। बासमती धान, कपास, सरसों, चना और मूंगफली की कीट प्रबंधन सूचना प्रणाली का विकास।
  • इंडियन इन्फोर्मेशन सिस्टम (INDUS) सॉफ्टवेअर का उपयोग करके लुप्तप्राय किस्म डेटाबेस को डिजिटल किया गया। भारतीय परिस्थितियों में 35 फसलों के DUS परीक्षण मानदंडों का विकास।
  • मेगा बीज प्रोजेक्ट द्वारा वर्ष 2006-07 में एक वर्ष में उन्नत किस्मों के बीज का उत्पादन दुगुना करके 606,000 क्विंटल किया गया; इस प्रकार खेती के लिए जारी किस्मों में बढोतरी संभव हुई।

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